वास्तु एवं ज्योतिष >> विलक्षण वास्तुम विलक्षण वास्तुमउमेश पाण्डे
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‘वास्तु’ के कुछ उपयोगी सिद्धान्त...
‘‘वास्तु’’ विषय जो कि अति प्राचीनकाल से भारत वर्ष में
मान्यता रखता है आज जन-सामान्य के लिये विशेष रुचि का विषय हो गया है। क्योंकि वास्तु-नियमों को आधार मान करके जिस भी भवन का निर्माण एवं निरूपण किया जाता है उसके रहवासी अवश्य ही स्वास्थ्य समृद्धि एवं शान्ति की दृष्टि से धनात्मक परिणाम प्राप्त करते हैं। दूसरी तरफ ‘ज्योतिष’
एक परम प्रचलित विज्ञान है और इसकी मान्यता भी अति प्राचीन है इस पुस्तक
में एक भवन को अधिकाधिक वास्तुपरक निरूपित करने हेतु ज्योतिषशास्त्र के
कुछ तथ्यों और वास्तु के प्रमुख तथ्यों को मिश्रित करके अत्यन्त ही सरल
भाषा में उमेश पाण्डे, जो कि एक सुपरिचित लेखक हैं, ने इस पुस्तक में इस
प्रकार रखा है कि इन विषयों से अनभिज्ञ व्यक्ति भी पुस्तक की विषय-वस्तु
को आसानी से समझ सकता है। यही नहीं पुस्तक में दिये गये अनेक रेखाचित्रों
के माध्यम से विषय और भी सुस्पष्ट हो जाता है। किसी भी व्यक्ति द्वारा किये जा
रहे भवन निर्माण अथवा निर्मित भवन को वास्तुपरक बनाने में भी यह पुस्तक
अवश्य ही उपयोगी सिद्ध होगी।
दो शब्द
भारत में प्राचीन काल से ही ‘वास्तु’ को
पर्याप्त मान्यता दी जाती रही है। अनेक प्राचीन इमारतें, मन्दिर इत्यादि
वास्तु के अनुरूप बने होने के कारण ही प्रकृति के थपेड़ों को सहने में
सक्षम हुए हैं और आज बी उनमें से सैकड़ों, अस्तित्व में हैं।
दरअसल ‘वास्तुशास्त्र’ के तथ्य परम वैज्ञानिक हैं, क्योंकि इसमें पृथ्वी के चुम्बकत्व, हवाओं की दिशाओं, सौर विकिरणों गुरुपत्व इत्यादि का समायोजन पूर्ण वैज्ञानिक तरीके से किया गया है। यही कारण है कि एक ‘वास्तुपरक’ मकान में रहने वाले सुख, शान्ति, समृद्धि, स्वास्थ्य आदि प्राप्त करते हैं जबकि वास्तु नियमों से विपरीत बने मकानों के रहवासी इन्हीं बातों के प्रति प्रतिकूलता का अनुभव करते हैं। उदाहरणार्थ, वास्तुशास्त्रों में अग्निकोण जहां पर दर्शाया हो यदि उस स्थान पुर रसोई घर होगा और ईशान्यकोण की तरफ जल सम्बन्धी इकाइयाँ, देवस्थान आदि तक निश्चय ही वहाँ के रहवासियों के लिये यह शुभ फलदायी होगा। इससे विपरीत स्थितियाँ विपरीत फल देंगी। मसलन स्वास्थ्य हानि, घर की बरकत में कमी, अत्यधिक तनाव आदि।
मैंने बरखड़ नामक स्थान पर एक मकान देखा जिसकी सीमा के चारों ओर सड़के थीं। वह मकान उत्तर-दक्षिण-पूर्व-पश्चमि चारों दिशाओं की ठीक अक्षीयस्थति में था। मैंने पाया कि उसके रहवासी परम शान्ति का अनुभव करते हुए उनके स्तर पर सुख प्राप्त कर रहे थे। एक घर के मुख्य दरवाजे सीमा के बहुत अधिक बड़े थे। मैंने पाया कि उसके अन्तर्गत अनेक ऋणात्मक घटनाएँ हुईं, अकाल मृत्यु भी हुई आदि। पुनः उस घर को छोड़कर जो वहाँ से चले गये और अन्यत्र बस गये उनकी स्थितियों में बहुत कुछ धनात्मक परिवर्तन हुए। मैंने ये भी देखा है कि जिन घरों में मरुस्थलीय पौधों को पाला जाता है वहाँ मानसिक तनाव, सन्तान पीड़ा, स्वास्थ्य हानि विशेष परिलक्षित होते हैं। वहाँ से बंजर जमीन के इन पौधों को हटा देने पर धनात्मकता के पर्याप्त दर्शन होते हैं, अस्तु।
‘ज्योतिष विज्ञान’ प्राचीनकाल से चला आ रहा सर्वमान्य विज्ञान है जिसमें मुख्यतः विभिन्न ग्रह-नक्षत्रादि का मानव और अन्य जीवितों पर प्रभाव का इस प्रकार अध्ययन किया गया है कि उनसे मानव के ऊपर घटित होने वाली घटनाओं को काफी हद तक सही-सही बताया जा सकता है। ज्योतिष के अनेकानेक सिद्धान्तों में से जो वास्तुशास्त्रों में अपना स्थान रखे हैं ऐसा ही कुछ ‘वास्तु’ में उपयोगी सिद्धान्तों को इस पुस्तक में स्थान दिया गया है ताकि वास्तु विषय को और भी ‘परफेक्ट’ बनाया जा सके।
एक स्थान पर रहने वाले रहवासियों पर, इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि ग्रहों का एवं ‘वास्तु’ दोनों का प्रबाव पड़ता है। किस किताब में ज्योतिष और वास्तु के कुछ तथ्यों को अत्यन्त ही सरल ढंग से संयोजित करने का प्रयास किया गया है। मेरा विश्वास है कि इन तथ्यों के आधार पर किया गया कोई भी निर्माण कार्य अवश्य ही उसके स्वामी तथा रहवासियों के लिये शुभ फलदायी सिद्ध होगा।
इस पुस्तक में मैंने ‘वास्तु’ से जुड़े हुए कुछ प्रमुख शकुन एवं अपशकुनों को भी स्थान दिया गया है। इसी प्रकार मैंने इसमें कई ऐसी बातों का भी समावेश किया है जो कि पुस्तक में वर्णित कोई तथ्य कुछ जटिल प्रतीत हो तो आप उसको छोड़कर शेष बातों को ही ग्रहण कर लें तथापि मेरा विश्वास है कि सम्पूर्ण पुस्तक को मैंने बहुत ही सरलता से आपके समक्ष रखा है। पुस्तक में कुछ तथ्यों में यदि कहीं कोई ‘मतान्तर’ बनते हैं तो वे मेरे अनुभव के आधार पर हैं। विद्वजन इस धृष्टता के लिए मुझे क्षमाप्रार्थी करेंगे। पुनः परुस्तक में हुई किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ पुस्तर की विषय-वस्तु और इसकी किसी भी कमी से अवगत कराने वाले के प्रति मैं हृदय से आभारी रहूँगा।
सच मानिये तो ऐसे कोई भी सुझाव मेरे अन्धकारमय मार्ग में प्रकाश की भाँति होंगे। सर्वप्रथम हमें श्री राजीव अग्रवाल, भगवती पाकेट बुक्स का हृदय से आभारी हूँ जिनकी प्रेरणा ही इस पुस्तक के सृजन का कारण बनी।
पुनः मैं श्री रवि गंगवाल, श्री दीपक मिश्रा, श्री ललित गोखुरू, डॉ. प्रफुल्ल दवे, श्री एस.के. जोशी, श्री सी.के. चौधरी तथा मेरे समस्त शुभ चिन्तकों का हृदय से आभारी हूँ इस पुस्तक के निर्माण में मुझे प्रेरित ही नहीं किया बल्कि अपना सहयोग भी दिया।
दरअसल ‘वास्तुशास्त्र’ के तथ्य परम वैज्ञानिक हैं, क्योंकि इसमें पृथ्वी के चुम्बकत्व, हवाओं की दिशाओं, सौर विकिरणों गुरुपत्व इत्यादि का समायोजन पूर्ण वैज्ञानिक तरीके से किया गया है। यही कारण है कि एक ‘वास्तुपरक’ मकान में रहने वाले सुख, शान्ति, समृद्धि, स्वास्थ्य आदि प्राप्त करते हैं जबकि वास्तु नियमों से विपरीत बने मकानों के रहवासी इन्हीं बातों के प्रति प्रतिकूलता का अनुभव करते हैं। उदाहरणार्थ, वास्तुशास्त्रों में अग्निकोण जहां पर दर्शाया हो यदि उस स्थान पुर रसोई घर होगा और ईशान्यकोण की तरफ जल सम्बन्धी इकाइयाँ, देवस्थान आदि तक निश्चय ही वहाँ के रहवासियों के लिये यह शुभ फलदायी होगा। इससे विपरीत स्थितियाँ विपरीत फल देंगी। मसलन स्वास्थ्य हानि, घर की बरकत में कमी, अत्यधिक तनाव आदि।
मैंने बरखड़ नामक स्थान पर एक मकान देखा जिसकी सीमा के चारों ओर सड़के थीं। वह मकान उत्तर-दक्षिण-पूर्व-पश्चमि चारों दिशाओं की ठीक अक्षीयस्थति में था। मैंने पाया कि उसके रहवासी परम शान्ति का अनुभव करते हुए उनके स्तर पर सुख प्राप्त कर रहे थे। एक घर के मुख्य दरवाजे सीमा के बहुत अधिक बड़े थे। मैंने पाया कि उसके अन्तर्गत अनेक ऋणात्मक घटनाएँ हुईं, अकाल मृत्यु भी हुई आदि। पुनः उस घर को छोड़कर जो वहाँ से चले गये और अन्यत्र बस गये उनकी स्थितियों में बहुत कुछ धनात्मक परिवर्तन हुए। मैंने ये भी देखा है कि जिन घरों में मरुस्थलीय पौधों को पाला जाता है वहाँ मानसिक तनाव, सन्तान पीड़ा, स्वास्थ्य हानि विशेष परिलक्षित होते हैं। वहाँ से बंजर जमीन के इन पौधों को हटा देने पर धनात्मकता के पर्याप्त दर्शन होते हैं, अस्तु।
‘ज्योतिष विज्ञान’ प्राचीनकाल से चला आ रहा सर्वमान्य विज्ञान है जिसमें मुख्यतः विभिन्न ग्रह-नक्षत्रादि का मानव और अन्य जीवितों पर प्रभाव का इस प्रकार अध्ययन किया गया है कि उनसे मानव के ऊपर घटित होने वाली घटनाओं को काफी हद तक सही-सही बताया जा सकता है। ज्योतिष के अनेकानेक सिद्धान्तों में से जो वास्तुशास्त्रों में अपना स्थान रखे हैं ऐसा ही कुछ ‘वास्तु’ में उपयोगी सिद्धान्तों को इस पुस्तक में स्थान दिया गया है ताकि वास्तु विषय को और भी ‘परफेक्ट’ बनाया जा सके।
एक स्थान पर रहने वाले रहवासियों पर, इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि ग्रहों का एवं ‘वास्तु’ दोनों का प्रबाव पड़ता है। किस किताब में ज्योतिष और वास्तु के कुछ तथ्यों को अत्यन्त ही सरल ढंग से संयोजित करने का प्रयास किया गया है। मेरा विश्वास है कि इन तथ्यों के आधार पर किया गया कोई भी निर्माण कार्य अवश्य ही उसके स्वामी तथा रहवासियों के लिये शुभ फलदायी सिद्ध होगा।
इस पुस्तक में मैंने ‘वास्तु’ से जुड़े हुए कुछ प्रमुख शकुन एवं अपशकुनों को भी स्थान दिया गया है। इसी प्रकार मैंने इसमें कई ऐसी बातों का भी समावेश किया है जो कि पुस्तक में वर्णित कोई तथ्य कुछ जटिल प्रतीत हो तो आप उसको छोड़कर शेष बातों को ही ग्रहण कर लें तथापि मेरा विश्वास है कि सम्पूर्ण पुस्तक को मैंने बहुत ही सरलता से आपके समक्ष रखा है। पुस्तक में कुछ तथ्यों में यदि कहीं कोई ‘मतान्तर’ बनते हैं तो वे मेरे अनुभव के आधार पर हैं। विद्वजन इस धृष्टता के लिए मुझे क्षमाप्रार्थी करेंगे। पुनः परुस्तक में हुई किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ पुस्तर की विषय-वस्तु और इसकी किसी भी कमी से अवगत कराने वाले के प्रति मैं हृदय से आभारी रहूँगा।
सच मानिये तो ऐसे कोई भी सुझाव मेरे अन्धकारमय मार्ग में प्रकाश की भाँति होंगे। सर्वप्रथम हमें श्री राजीव अग्रवाल, भगवती पाकेट बुक्स का हृदय से आभारी हूँ जिनकी प्रेरणा ही इस पुस्तक के सृजन का कारण बनी।
पुनः मैं श्री रवि गंगवाल, श्री दीपक मिश्रा, श्री ललित गोखुरू, डॉ. प्रफुल्ल दवे, श्री एस.के. जोशी, श्री सी.के. चौधरी तथा मेरे समस्त शुभ चिन्तकों का हृदय से आभारी हूँ इस पुस्तक के निर्माण में मुझे प्रेरित ही नहीं किया बल्कि अपना सहयोग भी दिया।
उमेश पाण्डे
1
वास्तु के बारे में
यूँ तो वास्तु शास्त्र की उत्पत्ति का मूल ‘अंखदासुर-वध’ से प्रकट होता
है तथापि ‘मृत्स्यपुराण’ के अध्याय 252 में स्पष्ट
उल्लेखित है कि इस शास्त्र के कुल अट्ठारह उपदेश्टा हैं। यथा—
भृगुरत्रिर्शिष्टश् विश्वकर्मा मयस्तथा।।
नारदो नग्नजिच्चैव विशालाक्षः पुरन्दरः।।
ब्रह्मा कुमारो नन्दीक्षः, शैनको गर्ग अवच।।
वासुदेवो अनिरुद्श्च तथा शुक्रबृहस्पती।।
आष्टा दशैते विख्याता वास्तु शास्त्रोपदेशकाः।।
नारदो नग्नजिच्चैव विशालाक्षः पुरन्दरः।।
ब्रह्मा कुमारो नन्दीक्षः, शैनको गर्ग अवच।।
वासुदेवो अनिरुद्श्च तथा शुक्रबृहस्पती।।
आष्टा दशैते विख्याता वास्तु शास्त्रोपदेशकाः।।
अर्थात्, भृगु, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वकर्मा, मय नारद, नग्नजित, विशालाक्ष,
पुरन्दर, ब्रह्मा कुमार, नन्दीश, शौनक, गर्ग, वासुदेव, अनुरुद्ध, शुक्र और
ब्रहस्पति ये अट्ठारह वास्तुशास्त्र के उपदेष्टा प्रसिद्ध हैं।
विशेष उल्लेखित है कि इन 18 उपदेष्टाओं में से विश्वकर्मा का वास्तुशास्त्र नामक ग्रन्थ अब भी प्रसिद्ध है। ‘मय’ के ‘मयमतम्’ नामक ग्रन्थ में वास्तु प्रकरण पर्याप्त दिया गया है। गन्धारराज नग्नजित धृतराष्ट्र के श्वरसुर महाराज सुबल के पिता थे। इन्होने वास्तुशास्त्र एवं आयुर्वैदिक विषयक एक-एक पृथक-पृथक ग्रन्थ की रचना की थी और इन्हीं के वास्तुशास्त्र ग्रन्थ के आधार पर गन्धार की प्रस्तर मूर्ति-कला बहुत प्रसिद्ध हुई।
विशालाक्ष अर्थात् भगवान् शिव ने भी वास्तुशास्त्र की रचना की थी। भगवान् शिव ने वास्तुशास्त्र के साथ-साथ अर्थाशास्त्र का भी उपदेश दिया है।
विशेष उल्लेखित है कि इन 18 उपदेष्टाओं में से विश्वकर्मा का वास्तुशास्त्र नामक ग्रन्थ अब भी प्रसिद्ध है। ‘मय’ के ‘मयमतम्’ नामक ग्रन्थ में वास्तु प्रकरण पर्याप्त दिया गया है। गन्धारराज नग्नजित धृतराष्ट्र के श्वरसुर महाराज सुबल के पिता थे। इन्होने वास्तुशास्त्र एवं आयुर्वैदिक विषयक एक-एक पृथक-पृथक ग्रन्थ की रचना की थी और इन्हीं के वास्तुशास्त्र ग्रन्थ के आधार पर गन्धार की प्रस्तर मूर्ति-कला बहुत प्रसिद्ध हुई।
विशालाक्ष अर्थात् भगवान् शिव ने भी वास्तुशास्त्र की रचना की थी। भगवान् शिव ने वास्तुशास्त्र के साथ-साथ अर्थाशास्त्र का भी उपदेश दिया है।
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